हिंदी साहित्य और हम
हमें नहीं पता हम क्या है ?क्या से क्या हो गए ?क्यों हो गए ?कभी अपने अंदर झाँककर नहीं देखा I किताबों के ढेर में साहित्य नहीं खोजा I आज के समय में हमारी सभ्यता ,संस्कृति खोती जा रही है और हम खड़े तमाशा ,पागलों की तरह देखते जा रहे हैं I
हिंदी साहित्य की बात करें तो हमारे पास ढेरों साहित्य हैं I किताबों के अम्बार लगे हुए हैं I हम अपने चुनिंदा साहित्य को अपना सकते हैं I जीवन में सभ्यता के द्वार खोल सकते हैं I समाज में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं I
साहित्य समाज का दर्पण होता है जिसमें झाँककर देख सकते हैं I अपने अंदर छुपी बुराइयाँ ,अच्छाइयाँ तमाम छोटी मोटी पनपती गलतियाँ I ढेरों क्रोध से भरी ज्वालायें I
जब हिंदी साहित्य की बात आती हैं तो न जाने लोग क्यों इससे पिछड़ते जा रहे हैं ?दूर भागते नजर आ रहे हैं I हमारा जो साहित्य है वह अकेलेपन में विलीन होता जा रहा है I हमारा रुझान ही फीका पड गया है I सोचने की क्षमता में कमी सी आ गयी है I हम अपने कामों में इतने व्यस्त हो गए है कि पता ही नहीं चलता क्या हो रहा है?I
सारे रचनाकार उम्मीदें लगाकर बैठे कि हमारी रचनाओं को लोग पढ़ेंगे हमें सम्मान से भर देंगे I किंतु ऐसा नहीं कुछ रचनाकारों की रचनाएँ सिमटकर ढेर सी दिखाई देतीं हैं I चेहरे पर उदासीनता साफ साफ़ नजर आतीं हैं I कल्पनाओं की घंटी बार बार परेशान करतीं हैं I
हमारा समाज पढ़ा लिखा है I बच्चे पढ़े लिखे है I किंतु साहित्य से उनका ध्यान पूरी तरह से अलग है I उन्हें पता ही नहीं चलता आखिर हिंदी साहित्य क्या है ?
पढने के लिए हमारे पास प्राचीन से लेकर आधुनिक युग तक ढेरों पुस्तकें है I बस पढने वाला चाहिए I अमल करने वाला चाहिए I हिंदी साहित्य की तरफ से द्वार आपके लिए हमेशा खुले हैं I आइये इनमें खो जाइए अपना जीवन संवारिए I
मैं आपसे यही कहूँगा आप जागरूक हैं तो कोई बात नहीं ,अगर नहीं हैं तो जरूर जागरूक हो जाइए I संदेह करने की कोई बात नहीं I हिंदी साहित्य आपकी मदद के लिए हमेशा खड़ा है बस इसे अपना लो अपने जीवन में बाँध लो I ये हमें सद्बुद्धि देगा आनंद से भर देगा I
अशोक बाबू माहौर