सुबह की धूप
सुबह की धूप
खेलती
मेरी गोद में ,
प्यारी नन्ही सी
फुदफुदाती ,
कभी आँगन में
क्रीड़ाएँ करती
उछलकर इधर-उधर
चढ़कर दीवाल पर
धम्म नीचे गिरकर
ताली पीटती
खिलखिलाती !
मुझे अच्छी लगती
जब गाल पर
चुप्पी लगाकर
छत से
अँगूठा दिखाती ,
मुँह
छोटा हिलाकर !
पल में
बाल विखराकर
हजारों में
रूप बदलकर
भयंकर ,
डराती
किन्तु शांत होकर
कान में कहती
कल लौटूंगी
खेलूंगी
फिर से
तुम्हारी गोद में
करूँगी नृत्य गायन
आँगन में !
अशोक बाबू माहौर