जब सूरज खिलता
जब सूरज खिलता है
हर यौवन चमकता है I
कोई मतवाला होकर
कोई हल्के गाता है II
होंठों से गिराकर स्वर
बाँध दोनों हाथों को I
मानो नए सबेरे पर
नया पर्दा डालने को II
थिरक-थिरक कर नाचकर
उफ़!हिलाकर बालों को I
झकझोर कर डाली को
नम बनाकर साँसों को II
हर सुबह कुछ मलता है
कोमल मक्खन हाथों से I
हर गीत एक गाता है
सुन्दर मंद भावों से II
कभी बढ़कर आगे से
कभी मुड़कर पीछे से I
छोटे से महल चढ़कर
मुँह बनाकर फीके से II
अशोक बाबू माहौर
जब सूरज खिलता है
हर यौवन चमकता है I
कोई मतवाला होकर
कोई हल्के गाता है II
होंठों से गिराकर स्वर
बाँध दोनों हाथों को I
मानो नए सबेरे पर
नया पर्दा डालने को II
थिरक-थिरक कर नाचकर
उफ़!हिलाकर बालों को I
झकझोर कर डाली को
नम बनाकर साँसों को II
हर सुबह कुछ मलता है
कोमल मक्खन हाथों से I
हर गीत एक गाता है
सुन्दर मंद भावों से II
कभी बढ़कर आगे से
कभी मुड़कर पीछे से I
छोटे से महल चढ़कर
मुँह बनाकर फीके से II
अशोक बाबू माहौर