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कविता

भूल गए नसीहत  

हरी घासों पर
टहलना
घूमना सडकों पर
कितना दूभर हो गया है I
खेद,हमें
अंदर भूचाल मचाती
आदतें
जिन्हें पकड़े हुए
व्यस्त खड़े हैं
मस्तमौला से
जलाकर चिराग
व्यस्तता का
भूल गए
नसीहत पुरखों की,
आज चिकित्सकों के पास
भीड़ में
पंक्ति लगाकर खड़े है
बदले से
मुँह लटकाए,
फुलाए
गुब्बारों सा I
                         
                 अशोक बाबू माहौर