भीड़ खचाखच
भीड़ खचाखच
ट्रेन में
फिर भी लोग
चिपके जा रहे
बहाते पसीना
बैठे,
खड़े स्तम्भ से
सुखाये गला I
चिल्लाहट बच्चों की
बुजुर्गों और महिलाओं की
ऐसा प्रतीत हो रहा
घमासान संग्राम
अब होने वाला है
सारी प्रजा
मुसीबत में
हरी..हरी..पुकार रही I
थपाक से
किसी के सिर पर
कपड़ों से लदा बैग,
पैरों तले
बोरे अटके
और वह औरत
चिल्ला उठी -
आँखें लाल-पीली कर I
अशोक बाबू माहौर