Header Ads Widget

नवीनतम रचनाएँ

6/recent/ticker-posts

अशोक बाबू माहौर की कविता


Image result for  train bheed image

भीड़ खचाखच

भीड़ खचाखच
ट्रेन में
फिर भी लोग
चिपके जा रहे
बहाते पसीना
बैठे,
खड़े स्तम्भ से
सुखाये गला I
चिल्लाहट बच्चों की
बुजुर्गों और महिलाओं की
ऐसा प्रतीत हो रहा
घमासान संग्राम
अब होने वाला है
सारी प्रजा
मुसीबत में
हरी..हरी..पुकार रही I
थपाक से
किसी के सिर पर
कपड़ों से लदा बैग,
पैरों तले
बोरे अटके
और वह औरत
चिल्ला उठी -
आँखें लाल-पीली कर I

                     अशोक बाबू माहौर