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अशोक बाबू माहौर की कविता

उधर खाई से गिरा

उधर खाई से 
गिरा 
हाँ गिरा 
बच्चा  किसी का 
और वह चोटिल 
फफक रहा 
बहाता आँसू गोलमटोल I 
किसी ने 
उसे नहीं रोका
न समझाया
न दिखाई ममता 
माँ की थोड़ी सी I 
भीड़ आश्चर्य साधे
 निहारती 
खड़ी स्तम्भ सी ,
न बड़ाया
हाथ किसी ने ,
गरीब बच्चा 
सजाकर होंठों पर माँ ..माँ 
बुलाता 
करता गुहार 
शायद उसे देख कोई 
माँ का स्पर्श करा दे I 

                               अशोक बाबू माहौर