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सुदामा दुबे की कविता

                                                 


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  गुलचाँदनी

गुलचाँदनी आज उदास क्यों ?
खड़ी शांत मानो अधर सीए !

पात पुष्प सूने सूने से प्रतीत
होता मानो पीर हो कोई हिये !!

सुगंध मंद सी क्यों हो रही ?
निखरती क्यों धरा से गगन !!

क्या वेदना लिए तुम ह्रदय में ?
धधकती मन में क्यों अगन !!

नीरस नीरव मौन लिए तुम
ह्रदय है क्या कोई गहन पीर !!

मौन का अबलंबन लिए हो
झरते क्यों नयनन से नीर !!


                              सुदामा दुबे