नारी कर संघर्ष
नारी
खड़ी हो
कर संघर्ष अब
संभाल
अपने अस्तित्व को
विकाश को
उठा वीणा
लगा नारे
लांघ देहरी द्वार को I
शाम घनेरी
अँधेरी
और सुबह खींजेगी
तुझ पर,
ओजस्वी हो
बयार भी
पीटेगी ताली
सामने अडचलें
ढेरों मुँह बाँधें,
दिखाएंगी तीर नुकीले
बबूल की डालियाँ
बूँदें ओस की
प्रहार करेंगी
तिनके भी बेरहम
राह के
तोड़ेंगे चुप्पी I
खुद को
सिध्द कर
शंक्तियाँ दिखा
कि अलौकिक सर्वशक्तिमान
है तू
विशाल भू पर,
लड़ सकती है
लहरों से
भूचाल मचाती
आँधियों से
उफ़ !नभ से भी
तोड़कर तारे
रख सकती है
कदमों में
अपने I
अशोक बाबू माहौर