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अशोक बाबू माहौर की कविता

नभ की ओर

नभ की ओर 
घूर 
उठ बैठी 
मिचलाती आँखें 
बिटिया नन्ही 
स्पर्श कर 
देह उसकी 
मंद समीर 
कान में 
मधुर ध्वनि बजाती I 
आँगन के
उस ओर 
पैर थिरकाती
करती नृत्य अलौकिक,
घास हरी 
खड़ी दीवाल पर 
देख मंद मुस्काती 
बन जाती 
सहेली उसकी 
करती ठाठ ठिठोली I 
छत पर खड़ा 
सुनहरा रवि 
अचंभित 
पुलकित हो 
मीठी सी 
चहल पहल कर 
चला जाता I 
             अशोक बाबू माहौर