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सुदामा दुबे की कविता


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उपवन 

उपवन में महकती रंग बिरंगे
पुष्पो की मधुर मधुर सी गंध !

विखेरते सब अपनी निराली
छटा वयार बहती जब मंद !!

गुलाब जूही, मोगरा, रातरानी
महकती कहीं चंपा, कचनार !

लाल गुलाबी श्वेत श्याम रंग
कहीं कहीं पुष्प खिले रतनार !!

अठखेलियाँ करती वृक्षों से
पुष्प पल्लवित होतीं लताएँ !

मधुर फल लिए झूमती कहीं
विटपों की कोमल शाखाएँ !!
                           कवि सुदामा दुबे