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अशोक बाबू माहौर की कविता

क्या देखा है 

उस पर्वत की ओर 
क्या देखा है ?
हमने 
हताश 
कुछ नहीं,
कुछ भी I 

हाँ देखा है 
हमने 
पर्वत को 
लड़ते तूफानों से 
अडिग 
हाथा पाई करते 
बूँदों से 
खामोश 
अपार मुसीबतों से I
 
मुँह ढके चाँद को 
उतरना,
उस पर बैठे 
टिमटिमाते जुगनू को,
खींजती 
ठेंगा दिखाती 
बयार को 
किन्तु सिमटी हुई 
धूल को 
रोते हुए 
लालिमा आँखों में,
रवि को भी 
देखा है 
मारते सलामी 
खूब 
खिलखिलाते आसपास I 
                अशोक बाबू माहौर