उदय रवि आभास
सुबह उदय रवि
आभास
चिड़ियाँ चहचाह उठीं
डाली- डाली पेड़ों पर
भरती उड़ान
अम्बर की,
माँ ने सजा दी
थाली
सुशोभित पूजा की
घिसने लगी चन्दन
अर्पित कर फूल
सुगन्धित धूप
प्रभु को
ध्यान मगन
बुदबुदाती I
किरणें असंख्य
फ़ैल जाती
मैदानों में,
स्नानकर,
तालाब में
बहुसुन्दर सजती
जैसे नव दुल्हन
सिंगार कर सोलह I
चारों तरफ उजाले
खिलखलाते
प्यारे नन्हे पौधे,
फूल गुलाब के
खिल जाते
घास रूठी हुई
सचेत
पुलकित होकर हँसती
ऐसा मधुर मिलाप
प्रकृति का
मानो मोहा लेता
मन को I
अशोक बाबू माहौर