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अशोक बाबू माहौर की कविता

उदय रवि आभास

सुबह 
उदय रवि 
आभास 
चिड़ियाँ चहचाह उठीं 
डाली- डाली पेड़ों पर
भरती उड़ान
अम्बर की,
माँ ने सजा दी 
थाली 
सुशोभित पूजा की 
घिसने लगी चन्दन 
अर्पित कर फूल 
सुगन्धित धूप
प्रभु को 
ध्यान मगन 
बुदबुदाती I 

किरणें असंख्य 
फ़ैल जाती 
मैदानों में,
स्नानकर,
तालाब में 
बहुसुन्दर सजती 
जैसे नव दुल्हन 
सिंगार कर सोलह I 

चारों तरफ उजाले 
खिलखलाते 
प्यारे नन्हे पौधे,
फूल गुलाब के 
खिल जाते 
घास रूठी हुई 
सचेत 
पुलकित होकर हँसती
ऐसा मधुर मिलाप 
प्रकृति का 
मानो मोहा लेता 
मन को I  
                                        अशोक बाबू माहौर