
हाइकु
सड़क पर
धूप सुनहरी थी
पहने वस्त्र I
राहें सूनी सी
फफकती रोतीं थीं
मैंने देखा था I
रोते लोग यूँ
अधूरे सपनों में
सच कहाँ हैं I
धूप बेघर
वीरान जंगल है
डर लगेगा I
हवा निडर
खूब दौड़ती पास
कंपाती मुझे I
शायद सच
सड़क पर डर
वाहनों का है I
अशोक बाबू माहौर