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हाइकु(अशोक बाबू माहौर)


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हाइकु

सड़क पर 
धूप सुनहरी थी 
पहने वस्त्र I 

राहें सूनी सी
फफकती रोतीं थीं 
मैंने देखा था I 

रोते लोग यूँ 
अधूरे सपनों में 
सच कहाँ हैं I 

धूप बेघर 
वीरान जंगल है 
डर लगेगा I 

हवा निडर 
खूब दौड़ती पास 
कंपाती मुझे I 

शायद सच 
सड़क पर डर 
वाहनों का है I 
 
        अशोक बाबू माहौर