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रेत पर लेटती बकरी 

तेज धूप ज्वाला उगलती 
तपती जमीन 
पाँव रखें तो कैसे ?
चुभती अंगीठी सी 
किन्तु एक बकरी 
रेत के ढेर पर लेटती 
करती मौज मस्ती, 
जैसे धूप
तपती जमीन 
न सता रहे हो उसे 
मानो लगते हो शीत छाँव से I 

पर क्यों ?
पता नहीं 
जरूर चुभते होंगे 
कंटीली झाड़ियाँ बन 
वह न रखती होगी 
ध्यान इनका 
शायद कूद फांद करते I 

          अशोक बाबू माहौर