ओस सुबह
पत्तियों पर गोल
चमके खूब।
फसलें हरीं
मनभावन आस
आँखें देखतीं।
अशोक बाबू माहौर
पत्तियों पर गोल
चमके खूब।
फसलें हरीं
मनभावन आस
आँखें देखतीं।
अशोक बाबू माहौर
साहित्यिक समाचार
काशी काव्य गंगा साहित्यिक मंच पंजीकृत की 179 वीं गोष्ठी शनिवार को मेरे कार्यालय श्री…
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