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अशोक बाबू माहौर की कविता















पत्तियों से लुढ़कती ओस 

पत्तियों से
लुढ़कती ओस
समा गयी
जमीन में
उदासी लिये।

हवा थिरकती
बजाने लगी
पत्ती, डालियों को
क्योंकि वह शायद?
खुश है
धक्के मार ओस को
बेखौफ।

          अशोक बाबू माहौर