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आलेख

                     

                        अपना अपना राग

       साहित्य को पढ़ने वालों की समाज में कमी है लिखने वाले अधिक और सर्वाधिक वे लोग हैं जो दूसरों की लिखी साहित्य सामग्री को चुरा चुरा कर अपना पेट भरने में लगे हुए हैं।प्रसन्नता मुख पर डालकर साहित्य सामग्री को अपने फोटो नाम के साथ प्रकाशित करते रहते हैं। भूल जाते हैं चोरी करना गलत काम है अंजाम बुरा भी हो सकता है।
     एक ही रचना के कई रचनाकार उभरकर सामने आ रहे हैं जैसे कब्जा जमाए बैठे हों। खींचा तानी कर मेरी तेरी कर रहे हों। चोरी करने वाले रचनाकार भूल जाते हैं वास्तविकता क्या है?क्या परिणाम हैं?  चूँकि रचनाकार बनना  आसान नहीं है। किसी दूसरे के साहित्य को चुराकर अपने नाम के साथ प्रकाशित  करना आसान है।
     लिखना नहीं आता मत लिखो खुद को अपमान की जंजीरों में मत जकड़ो। ये गलत है क्योंकि साहित्य पवित्र धरोहर है? अनमोल चिंतन है।
     एसे ही चोरों का पर्दाफाश करने के लिए 'काव्य चोरों का डेटाबेस' नाम से फेसबुक पेज चलन में है जो साहित्य की चोरी करने वाले साहित्यकारों का पर्दाफाश करता है। ऎसा होना ही चाहिए ताकि त्रुटियों को सुधारा जा सके। चोर साहित्यकारों को एक नयी सीख मिल सके।
                                     धन्य हो
                                                            अशोक बाबू माहौर