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अशोक बाबू माहौर की कविता

तुम नारी हो 

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खामोश क्यों? 
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तुम्हारे होंठ 
सिले सिले से 
तुम नारी हो 
आधुनिक युग की 
बढो 
आगे बढो 
दिखाओ बल अपना 
शक्तियाँ अपार 
जमाने को 
ताकि बुरी नजरें 
तुम पर 
हावी न हो 
ना ही टोके राह में 
व्यर्थ
कोई नारी  समझ।

                            अशोक बाबू माहौर