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कविता

गाँव में आज भी

गाँव में 
आज भी
दौड़ते बच्चे गाड़ी के पीछे
नंगे पाँव!
गाँव में
आज भी
जलाकर अलाव बैठते लोग
गढते कहानियाँ! 

गाँव में
आज भी
धूप में सेंकती पीठ बच्चों की
दादी मधुभाषी!
खेत की मैडों पर
आज भी
नीली घास लहराती है
करती बातें मधुर!

        अशोक बाबू माहौर 
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