पेड़ों की डालियों पर
पेड़ों की डालियों पर
रोज सुबह
लद जाती
ओस
और झूलने लगती झूला
हौले - हौले
कभी आसन जमाये बैठ जाती
मौन धारण किये।
प्रफुल्लित पेड़ खामोश
चुन चुन गिन लेता
बूँदें अनगिनत
रखना चाहता
हथेली पर
जिन्दगी भर
किंतु भानु समेट लेता
भर झोली
और ले जाता
साथ अपने
घर अपने
रोज।
अशोक बाबू माहौर