जब जीवन का दर्पण देखा
जब जीवन का दर्पण देखा
भीतर खुद का तर्पण देखा
बाहर कितनी छोटी दुनिया
अंतस जब उत्कर्षण देखा
अग्नि शिखाएं झूम रही थीं
जीवन माथा चूम रही थीं
जब मृत्यु के सामने हमने
ज़िन्दगी का समर्पण देखा....जब जीवन का...
पाप कर्म चिंघाड़ रहे थे
यम जब कोड़े मार रहे थे
कर्मों के परिणामों का जब
कसौटी पर कर्षण देखा.......जब जीवन का
पुण्य कर्म पुरष्कृत होते
खुशियों से वो झंकृत होते
देव द्वार में पुण्य कर्म पर
पुष्पों का जब अर्पण देखा....जब जीवन का
स्वर्ग नर्क की बस्ती देखी
एक एक हमने हस्ती देखी
माया मोह के जंजालों से
इंसानों का मर्दन देखा.......जब जीवन का
स्वयं की भी शक्ल ना दिखती
ज्ञानियों की अक्ल ना दिखती
वहां किसी का जोर न चलता
हमने ऐसा प्रतिक्षण देखा. ..जब जीवन का
आइने के हर एक छोर पर
हम दीखे ना किसी मोड़ पर
"संतोष"अंदर मुस्कराते
जब कान्हा का दर्शन देखा
जब जीवन का दर्पण देखा
अंदर खुद का तर्पण देखा
---------------------------
सर्वाधिकार सुरक्षित
@सन्तोष कुमार नेमा "संतोष"
आलोकनगर जबलपुर
मोबा 9300101799
