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कविता (विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र')

ये मित्र हैं

ये किताब नहीं 
ये मित्र हैं
हम सब की
इन्हें सहेज कर रखिए
अपना हृदय समझ कर

इक्कीसवीं सदी है
इनके इस रूप के
साकार की
फिर ये नहीं मिलेगी
पुस्तकालयों में, 
बैठकों में,
बच्चों के बस्तों में ,
दराजों में भी इन्हें
ढूंढ़ते रह जाओगे...
इन्हें पाने के लिए
गूगल पर सर्च करना होगा
बार-2 नेट खर्च करना होगा

जिस दिन भूल से
या जानबूझकर 
बटन दब जायेगा
ये सम्पूर्ण-धन
हमारे हाथ से निकल जायेगा
ये विज्ञान और ये इंसान
देखता रह जायेगा...

इसलिए
इन्हें सहेज के रखिए
ये किताब नहीं
ये मित्र हैं
हम सब की...
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                   विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' 
                   कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,
                   स.मा. (राज.)322201
                   मोबा: 9549165579
                   ई-मेल :-vishwambharvyagra@gmail.com