हिंदी साहित्य के जाने माने कवि गोपाल दास नीरज का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गाँव में 4 जनवरी 1924 हुआ था।गोपाल दास नीरज का नाम हिंदी साहित्य से लेकर हिंदी सिनेमा तक काफी चर्चित रहा।नीरज जी ने कई फिल्मों के लिए गीत भी लिखे जैसे कन्यादान, मेरा नाम जोकर, छुपा रूस्तम, तेरे मेरे सपने, प्रेम पुजारी आदि।
आपके प्रकाशित काव्य संग्रह नीरज की पाती, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाये नहीं, बादल बरस गये, लहर पुकारें, कारवाँ गुजर गया आदि ।
आपके प्रकाशित काव्य संग्रह नीरज की पाती, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाये नहीं, बादल बरस गये, लहर पुकारें, कारवाँ गुजर गया आदि ।
नीरज जी को पद्मश्री ,पद्मभूषण ,यस भारती आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है
19 जुलाई 2018 को हिंदी साहित्य का ये महाकवि इस दुनिया को अलविदा कहकर पंचतत्व में में विलीन हो गया।
मेरा नाम लिया जाएगा
आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम की चर्चा होगी, मेरा नाम लिया जाएगा |
मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा |
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा |
खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा ?
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा ?
काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किंतु बरसने वाली, आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर साँस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा |
मैंने किंतु बरसने वाली, आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर साँस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा |
जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आँख वहाँ बरसी है
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हँसकर ज़हर पिया जाएगा |
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हँसकर ज़हर पिया जाएगा |
गोपाल दास नीरज
