हाइकु
बूढ़े हो रहे
घने वृक्ष वन के
निराश खडे़।
घने वृक्ष वन के
निराश खडे़।
आँखें मलती
ड़ालियाँ हरी भरी
पत्तियाँ टूटी।
ड़ालियाँ हरी भरी
पत्तियाँ टूटी।
अशोक बाबू माहौर
साहित्यिक समाचार
काशी काव्य गंगा साहित्यिक मंच पंजीकृत की 179 वीं गोष्ठी शनिवार को मेरे कार्यालय श्री…
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