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घोंसला बुनकर उड़ गयी



घोंसला बुनकर 
उड़ गयी
चिड़िया
जैसे सताई हो
किसी ने
या जगह देखकर टूट गयी
आँखें नम सी
खामोश गूंगी बहरी बनकर।

साथ अधूरा सा
अपनाकर
आँखें नम
पंखें हिला डुलाकर
निशब्द सी
शब्द बुन गयी
चिड़िया भोली भाली
श्यामल सी।
           अशोक बाबू माहौर