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बत्तखें पानी में (Battkhen pani men Ashok babu mahour)


बत्तखें
पानी में
तैरती
शोर मचाती
गाती गुनगुनाती
जैसे जमा ली महफिल
स्वरों की
प्यारी, मधुशाला सी।

घास हिलोरे ले
नृत्य करती
निशब्द सी
होंठ चलाती
मोटे पतले
खूब झकझोरती बदन अपना
मन अपना
निसंकोच
यूंही
वैसे ही
जैसे वर्षों पुरानी
मंद बुध्दि।
       
         अशोक बाबू माहौर