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उड़ जाना










हे! बूँद
ओस की
तुम बैठ तो गयी
ड़ालियों पर
मगन होकर
पर सुबह उड़ जाना
हठ जाना
या जमीन पर बिखर जाना
सौंधी सौंधी खुश्बू फैलाना
क्योंकि रवि उदय होते ही?
जला देगा

भाप कर देगा
तन
मन
और अस्तित्व तुम्हारा।

                       अशोक बाबू माहौर