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मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ? 
कहाँ से आया? 
कहाँ हूँ? 
भूल गया हूँ
अपने आप को
कोई तो बताए
खड़ा हूँ यहाँ
निर्बल सा
ठगा सा
अनजाने शहर में
ठीक वैसे
जैसे पत्थर की बनी मूर्ति
दोपहरी में! 

               अशोक बाबू माहौर