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मन काँप उठा ये सोच के मेरा


दंगों से दहशत  में दिल्ली  और सियासत जारी है।
क्यों  करते  हैं ऐसा वे, जो  मानवता  पर भारी है।
लथपथ हैं क्यों खून से गलियां, कोई नहीं बताएगा,
धर्म कर्म  के चक्कर में, क्यों  दुनियादारी  हारी है।

कल तक  तो सब  साथी थे, आज दुश्मनी जारी है। 
दिखें सामने टूट पड़ेंगे जब हाथों में छिपी कटारी है।
गंगा जमुना सी तहजीबें, हम सारे ही भूल चुके क्यों
सबकी ज़हर उगलती बातें,काटें ज्यों वे पैनी आरी हैं।

खामोशी  से बैठ  गए सब, जो सक्षम अधिकारी हैं।
जो सच को न बांच सके, लगते उनके आज्ञाकारी हैं।
अन्धे, बहरे और गूंगे ही, क्रांति के बन गए हैं अगुए,
मौके पर वे छिप जाते क्यों, जिन पर दारोमदारी है।

जो भड़काते वे बच जाते, कितनी उनकी हुशियारी है।
उनके घर को  कुछ नहीं होता, पक्की चारदीवारी है।
हरदम जेड सुरक्षा वाले घेरे देखो उनको घेरे रहते हैं।
उनकी सेवा की खातिर ही, कुछ बैठ गए दरबारी हैं।
















डॉ विजय कुमार पुरी
ग्राम पदरा पोस्ट हंगलोह तहसील पालमपुर ज़िला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश 176059
9736621307, 7018516119