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संकट की घड़ी है

संकट की घड़ी है
देश में
और हम क्या कर रहे? 
घूम रहे इधर उधर
सड़क पर
गलियों में
नहीं कर रहे पालन
नियमों का, 
हम भूल गए क्या नियम अपने ही
और न्यौता कर रहे
महामारी का
जानबूझकर क्यों? 
क्या वो लगती है तुम्हारी? कोई
या रिश्ता बनाने पर तुले हो
बेकार में
देते दावत , 
त्यागकर घर परिवार रिश्ते
अंधविश्वास के झांसे में! 

                     अशोक बाबू माहौर