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अभी भी वक्त है

अभी वक्त है
कुछ पढ़ लूँ
गढ़ लूँ
आसमां छू लूँ
बना लूँ
एक नया आशियाना
क्योंकि मैं इंसान हूँ?
तुम्हारी तरह
फर्क इतना
तुम सपने मार देते हो
मैं सपने सजाता हूँ!

              अशोक बाबू माहौर