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घास के टुकड़े(अशोक बाबू माहौर)

आपने 
कितने टुकड़े कर दिए
घास के
मुझे अच्छा नहीं लगा
मैं रुठ गया हूँ
अपनो से
पता नहीं क्यों? 
शायद ये घास
मुझे प्रिय है
ठीक वैसे ही
जैसे मेरी अपनी देह! 

          अशोक बाबू माहौर