Header Ads Widget

नवीनतम रचनाएँ

6/recent/ticker-posts

चाय कवि और कविता

चाय, कवि और कविता
बन जाती है
चाय पर कविता
बड़ा अच्छा लगता है
जब बुलाते हैं
आप किसी कवि को
करते हैं दिलचस्प बातें
आज की
कल की
जीवन की, 
सच कहूँ ऐसा लगता है
जैसे मन गुनगुनाता करता नृत्य |
अचानक प्यारी प्यारी टिप्पणियों का आना
मधुरस घोल देता है
उमंगें अतुल्य उमड़ पड़ती हैं
सच कहूँ
चाय पर कविता
बेशकीमती बन जाती है
जिसका स्वाद हम मिलजुलकर 
शाम चार बजे लेते हैं |

                   अशोक बाबू माहौर