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छोटे से घौंसले में

छोटे से घौंसले में

चुंगा रही दाना
अपने नन्हें बच्चों को
चिड़िया साँवली |
वह खुश थी
परिवार भी
अफसोस इतना था
कहीं बारिश की बूंदें
न कर दे
घर को सराबोर
इसलिए वह हर रोज
नयी छत
बुनती थी
अथक प्रयास करती थी
मीठी वाणी बोलती थी
प्रिय लगती थी |

                 

                   अशोक बाबू माहौर