वह माँ है
उसने
आज फिर
अपने पर पसार लिये
और स्तंभ सी
छतरी बन
खड़ी हो गयी
नन्हें- मुन्ने बच्चों की खातिर,
क्योंकि बारिश?
थमने का नाम ही नहीं ले रही।
तो क्या?
ममता से भरी
एक माँ भी है
जन्म दाता भी
जमाने से
लड़ने की शक्ति रखती है ।
झेलकर अनेकों पीड़ाएं
संतानों को खुश रखती है
तभी तो
बारिश में
खुद ठिठुर कर
छत्र छाया बन जाती है ।
अशोक बाबू माहौर
