साली पुराण:सार्थक हास्य व्यंग्य का दस्तावेज
वरिष्ठ कवि आ. खालिद हुसैन सिद्दिकी का हास्य व्यंग्य संग्रह महज मनोरंजन ही नहीं कराता ,बल्कि हंसाने, गुदगुदाने के साथ ही तीक्ष्णता के साथ कटाक्ष भी करता और चिंतन भरे सवाल भी उछालता है।
तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत रहे सिद्दीकी जी ने अपनी रचना धर्मिता से अपनी व्यापक दृष्टिकोण उजागर किया है। संकलन की रचनाओं के समायोजन में उनके संपादक होने का प्रभाव भी साफ झलकता है। जो रचनाओं के चयन और क्रम से स्पष्ट होता है।
साली पुराण को महज एक हास्य व्यंग्य का संकलन मात्र कहना न्याय संगत नहीं है। क्योंकि संकलन की रचनाएं सिर्फ़ हंसाती या व्यंग्य भर नहीं करतीं, अपित तीखे और सार्वभौम प्रश्न भी उठाती हैं, अंदर तक कुरेदती और जागृति करने,कराने का सतत प्रयास भी करती हैं।
मूलतः गीतों गजलों के सशक्त हस्ताक्षर खालिद जी का हास्य व्यंग्य भी शालीनता की उत्कृष्टता के दायरे में ही हाथ पाँव पसारे है।मगर संकलन के नाम वाली पहली ही रचना में बड़ा दिल दिखाते हुए साली के गुणों का बखान
"हर जीजा को लगती बड़ी निराली
चाहे वो दे जी भर कर गाली।"
के साथ न पुरुषों की एक मुराद पूरी करने का आग्रह करके पुरुषों की लाबी में खुद को स्थापित करने का सामयिक प्रयास भी किया है-
आप मत दीजिए खुशहाली
पर मेरे कहने पर
कहीं से भी कुछ जुगाड़ करके
अवश्य दे देना
सभी को एक एक साली।
नेताओं की महिमा अपरंपार में राजनेताओं पर तीखा प्रहार भी किया है-
नेता! आज के युग में
सिर्फ़ लेता है,
देता है!सिर्फ़ आश्वासन।
शासन सत्ता पर अनूठा व्यंग्य "अप्रैल फूल" चिंतनीय भाव जगाता है।
उम्मीदवारों पर केंद्रितरचना "चुनाव प्रचार" में "खुले आम पुलिस से लड़े हैं, इसीलिए आज के चुनाव में खड़े हैं।" सोचने को विवश करता है।
"पागल कुत्ता और डाक्टर" भ्रष्ट मानसिकता पर हमले करता है, तो "शादी का अर्थ"और "प्रेम का अर्थ" हास्य को परिलक्षित करता है।
"मेरा भारत महान" में खालिद जी सीधा आरोप लगाते हैं कि
"कल्यान तो केवल सरकारी आदमी का होता है,
आम आदमी तोआदिकाल से अब तक
केवल रोता है।"
"स्वप्न में गाँधी" में गांँधी की पीड़ा का यथार्थ चित्रण कर आइना दिखाने का सुंदर प्रयास किया है।
"अनोखा संसार" में आज के आदमी की मानसिकता को खूबसूरती से उकेरकर खुद से खुद के लिए चिंतन को बाध्य किया है।
"राम और राजनीति" से आमजन को संदेश देने के साथ "पड़ोसन का इश्क", "भेड़िया", पागलखाने का डाक्टर", शीर्षक से लाजवाब हास्य और "थानेदार" में भ्रष्टतंत्र पर प्रहार किया है।
"पालतू गाय" में गाय की आड़ में दूषित मानसिकता पर कलम चलाई है।
"विश्व पत्नी सम्मेलन" लोटपोट करने को बाध्य करता है ।
अपनी अन्य रचनाओं और क्षणिकाओं के साथ संग्रह की रचनाएं हास्य, व्यंग्य की संतुलित परिधि के भीतर रहकर जीवन और समाज के विद्रूपता को उजागर कर चिंता व्यक्त करने और बदलाव का आवाह्न संग्रह की ग्राहयता को मजबूत करता है।
142 पेज के इस काव्य संग्रह की अंतिम रचना "पत्नी समाचार" में लोटपोट करने वाले हास्य से समापन किया है।
रवि पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित संग्रह पठनीय ही नहीं आइना भी दिखाती है तो हास्य से लोटपोट करने में सफल होती प्रतीत होती है।
आ. खालिद सिद्दीकी जी ने अपने बहु व्यापी चिंतन को शब्दों में ढालकर पाठकों को संग्रह के रुप में प्रस्तुत किया है ।
एक व्यंग्यकार ही नहीं गजलकार के रुप में भी उनकी सृजनात्मक क्षमता प्रशंसनीय है।
बतौर पाठक मेरा मानना है कि आ. खालिद जी साहित्यिक यात्रा मील का पत्थर साबित होने की ओर अग्रसर हैं।
"साली पुराण" की सफलता की शुभकामनाओं के साथ।
समीक्षक:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
