फाग के रंग बिरंगी गीत से सजे पिसौद में महफ़िल
अरे सररर रसिया आज बिरीज में...
होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। छत्तीसगढ़ के गांव पिसौद चांपा में यह त्योहार हर्षोल्लास के साथ होली उत्सव मनाया गया । पहले दिन गांव प्रमुख के साथ मिलकर पुजारी (बैगा) पूजा कर होलिका जलायी जाती है, जिसे इस दिन को होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं। लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि स्नेह पूर्वक लगाते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग जाति- पांति, पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं । एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग का गाना प्रारंभ हो जाता है। इस मौसम में प्रकृति भी सज धज कर तैयार रहती है । खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लासित हो उठते हैं ।खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। वातावरण खुशियों से खिल उठता है हर घर में व्यंजन पकवान बनाए एवं बांटे जाते हैं। गांव के समीप ही पिथमपुर में आज से पांचवें दिन भगवान भोलेनाथ का भव्य बाराती निकाली जाती है जिसमें साधु संत भक्त जन विशाल संख्या में शामिल होते हैं । यह शिव जी का मेला एक सप्ताह तक चलता है ।
ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का केंद्र होता है। बरसाने की लठमार होली काफ़ी प्रसिद्ध है जहाँ ब्रजधाम में राधा और कृष्ण के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं वहीं अवध में राम और सीता के जैसे होली खेलें रघुवीरा अवध में .... । होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं, इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद का माना जाता है । प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी की शान में कमी नहीं आती है। आज भी हमारे गांव में टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए हैं। साथ ही इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहे हैं । रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं। अब लोगों में जागरूकता आ रहा है जिसके कारण पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण का विशेष ध्यान दिया जा रहा है । वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव कहा जाता है। हरिराम साहू, विनय सिंह क्षत्रिय, दीपक साहू, डॉ विजय ,राम रतन श्रीवास "राधे राधे", शांतनु, सोमू, देवी भागवत साहू, कृष्ण कुमार , बृजेश, प्रजेश सिंह, मोनू, रिंकू , फिरत , फेकू दास महंत , विजय , राधारमण श्रीवास, मोती लाल केवट, बिहारी साहू, नारायण, संतोष कुंभकार, भारती साहू , पुरूषोत्तम साहू, रामजी यादव , सनत, विकास, इत्यादि सभी गांव के लोगों में हर्षोल्लास का महौल बना हुआ है।
