मुक्तक
वो घर छोड़कर जाने लगे थे
हाथ छुड़ाकर भागने लगे थे
जाने क्या थी उनको जाने की
खुद को मुझसे हटाने लगे थे।
अशोक बाबू माहौर
मुक्तक
वो घर छोड़कर जाने लगे थे
हाथ छुड़ाकर भागने लगे थे
जाने क्या थी उनको जाने की
खुद को मुझसे हटाने लगे थे।
अशोक बाबू माहौर
साहित्यिक समाचार
काशी काव्य गंगा साहित्यिक मंच पंजीकृत की 179 वीं गोष्ठी शनिवार को मेरे कार्यालय श्री…
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