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बड़ा ड़र लगता है

 बड़ा ड़र लगता है



बड़ा ड़र लगता है

मुझे

अपनी परछाई से,

जब मैं चलता हूं

वो भी चलती है

बिलकुल चिपकी हुई।

मैं उसे भगा भगा कर

थक गया हूं

वो कदापि नहीं भागती

क्या करूं?

आँखें मसल देखता हूं

पास मेरे ही बैठी होती है

जैसे साथी हो

कई जन्मों की।


                              अशोक बाबू माहौर