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अशोक बाबू माहौर की कविता - मुझे लिखना है

 मुझे लिखना है



कई दिन हो गए

यूँ ही

घूमते -घूमते

आवारापन साधे

अब खुद को बदलना है

मुझे लिखना है।


तुकांत या अतुकांत

जैसी भी हो कविता

सटीक शब्दों का चयन कर

कागज़ पर उतारना है

मुझे लिखना है।


कर चुका हूँ

समय बहुत खराब

भुला बैठा हूँ ज्ञान

किंतु कुछ भी हो

अब पढ़ना समझना है

मुझे भी लिखना है।


                          - अशोक बाबू माहौर