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अशोक बाबू माहौर की कविता - व्याकुल जीव - जंतु

 व्याकुल जीव - जंतु




बारिश थमी

हटे बादल

सूरज चढ़ आया छाती पर,


उमस हुई

पसीने से लथपथ लोग

उदास बैठे

घबराये से

जैसे तप रहे अग्नि में ।


हवा भी

थकी हारी सी

मानो सो गयी कहीं

आराम से,

व्याकुल जीव - जंतु

ताक रहे राह किसी शीतलता की

ताकि सुकून मिल सके

भीषण गर्मी से

आज ही ।


                               - अशोक बाबू माहौर