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दो मुक्तक रचनाएँ

मुक्तक



 जख्म पुराने भरकर फिर भी रोता रहा

या खुदा ये कैसा दर्द जो होता रहा

बदल गए खैर अब अपने ही अपनों से

मैं खुद को जलाकर खुद ही बुझाता रहा।


जरा देर थी तो पहले बता देते

परेशानियों को हम भी हटा देते

बेवजह यूं न आते शक में तुम कभी

अपनी बेबसी हमें भी बता देते।

                           - अशोक बाबू माहौर 


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