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मां-बाप की सेवा: परिवार और संस्कारों की जड़

 

मां - बाप की सेवा 


मां-बाप की सेवा भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा धर्म माना गया है। वे हमारे जन्म से लेकर बड़े होने तक निस्वार्थ प्रेम, सुरक्षा और मार्गदर्शन देते हैं। इसलिए संतान का पहला कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता का सम्मान करे, उन्हें समय दे और उनकी भावनाओं को समझे। मां-बाप केवल पालन-पोषण ही नहीं करते, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर हमारा संभलना, गिरना और फिर उठना सिखाते हैं। उनके अनुभव किसी भी पुस्तक से अधिक मूल्यवान होते हैं, इसलिए उनकी बातों और सलाह को महत्व देना ही असली सेवा है।





सेवा का अर्थ केवल शारीरिक देखभाल नहीं है, बल्कि प्रेम, अपनापन और भावनात्मक सहारा देना भी है। बढ़ती उम्र में माता-पिता को दवाइयों से ज्यादा अपने बच्चों की दो बातें, साथ बैठना और अपनेपन का एहसास चाहिए होता है। आज की तेज रफ्तार और व्यस्त जीवनशैली में कई बार युवा पीढ़ी समय की कमी या दूरी के कारण माता-पिता को पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाती, जिससे वे अकेलापन महसूस करते हैं। ऐसे समय में छोटी-सी मुस्कान, बातचीत या सहानुभूति भी उनके दिल को गहरा सुकून देती है।


वृद्धावस्था में माता-पिता अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। कभी-कभी छोटी-छोटी बातें उन्हें दुःख पहुंचा सकती हैं। इसलिए सेवा करते समय धैर्य और समझ की बहुत जरूरत होती है। जिस तरह उन्होंने बचपन में हमारी गलतियाँ माफ करके हमें संभाला, उसी तरह हमें भी उनकी कमजोरियों को सम्मान के साथ स्वीकार करना चाहिए। उनके प्रति प्यार और सम्मान ही सेवा का वास्तविक आधार है।


मां-बाप की सेवा केवल भावनात्मक संतुष्टि ही नहीं देती, बल्कि यह बच्चों में अच्छे संस्कार भी पैदा करती है। जब बच्चे अपने माता-पिता को दादा-दादी की सेवा करते देखते हैं, तो उनके मन में भी वही संस्कार स्वयं विकसित होते हैं। इस प्रकार सेवा की यह परंपरा पीढ़ियों तक चलती रहती है और परिवार मजबूत बनता है।


माता-पिता का आशीर्वाद जीवन का सबसे बड़ा धन है। उनकी सेवा करने से मन में शांति, घर में सुख और जीवन में सफलता बढ़ती है। इसलिए मां-बाप की सेवा को कर्तव्य न समझकर सौभाग्य मानना चाहिए। उनका सम्मान करना, समय देना और प्रेमपूर्वक उनकी देखभाल करना ही जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। माता-पिता के आशीर्वाद से ही जीवन की राहें आसान होती हैं—यही सबसे बड़ा सत्य और सबसे बड़ा संस्कार है।