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डॉ सीमा भट्टाचार्य की कविता - विभोर

   विभोर



अंशुमन सा सहस्त्र 

आरव हो आलोकित

 नीरव में मल्हार बजाता ।


सांध्य की गोधुलि 

तारक अष्ट दिशा 

में लाल स्याह रचाता ।


प्रणय पुष्प प्रस्फुटित

माधुर्य सिंचते सिन्गध 

प्रकृति कण को ।


त्रिभंगी राधे कृष्ण

संग छवि प्रतिबिंबित

नेत्र मन को ।


अथाह अनुराग की

सतह आभा सीप 

रूप पाते मोती ।


शत मधुमास सम 

एक प्रिय स्वयं

स्वर्गतर अनुभूत होती ।


                          डॉ सीमा भट्टाचार्य 

                               बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


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