विभोर
अंशुमन सा सहस्त्र
आरव हो आलोकित
नीरव में मल्हार बजाता ।
सांध्य की गोधुलि
तारक अष्ट दिशा
में लाल स्याह रचाता ।
प्रणय पुष्प प्रस्फुटित
माधुर्य सिंचते सिन्गध
प्रकृति कण को ।
त्रिभंगी राधे कृष्ण
संग छवि प्रतिबिंबित
नेत्र मन को ।
अथाह अनुराग की
सतह आभा सीप
रूप पाते मोती ।
शत मधुमास सम
एक प्रिय स्वयं
स्वर्गतर अनुभूत होती ।
डॉ सीमा भट्टाचार्य
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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