अब कहाँ वो
दीवालों पर लिखना
साफ़ करना
पोतना कालिग से
दौड़कर
आँचल थामना
माँ का
घूमना सडकों पर
गलियों में
लड़ना, झगड़ना
अब कहाँ
कोसों दूर
मुझसे
खड़ा हूँ
उस चौराहे पर
जहाँ
चारों तरफ आँधियाँ
भूचाल मचाती
खींजती
आक्रोश दिखाती I
पल रो पड़ते
अजीब से
मेरे
आँसू बहाते
उम्र का पड़ाव
कुचलकर आकांक्षाएँ,
हताश
केवल धैर्य जोड़ता
कहानियाँ झूँठी गढ़कर
जीवन की
गीत ग़मों के सुनाता I
अशोक बाबू माहौर