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अशोक बाबू माहौर की कविता

आइए बैठिए

आइए
बैठिए
पढ़िए अखबार
खबरें ताजा
लीजिए चुस्की चाय की
गुनगुनाइए गीत
हँसिए
खेलिए
बातें कीजिए
प्यार मोहब्बत की
आज की
कल की
हमारी अपनी
बाप की
बेटों की
परिवार की
समाज की
मकान की
जमीन की
और मुस्कुराते मिलिए गले
बढ़ाइए हाथ
दोस्ती का।
        अशोक बाबू माहौर