मीठे मीठे फल से अपने
गोद मही की भरने लगा !
महक लिए मादक मतवारी
महुआ मस्ती करने लगा !!
सरस सारिका राग छेड़ रही
नव किसलय की ओट लिए !
बौर देख बौराई शाखें
अंब से आसव झरने लगा !!
अमलतास हुआ पीला पीला
सिंदूरी खिला फूल पलाश !
चटक रंग की चादर ओढ़े
गुलमोहर हिये हरने लगा !!
दहक रहा अंगारे जैसा
दिनकर अपने यौवन में !
दंभ हुआ भारी समीर को
भेष भाँति के धरने लगा !!
सरिता वापी कूँप तड़ागे
सारे वारि हीन हुए !
बस्ती और विपिन में देखो
जीव प्यास से मरने लगा !!
"कवि" सुदामा दुबे
