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महका ना मधुमास

रैना  रही  उदास  सखी  री 

महका ना मधुमास सखी  री !

गिनती रही गगन के तारे 

साजन थे  ना साथ सखी  री !!

              संग सदा  उनका मुझको 

              आता है हिये रास सखी  री !

              रोम रोम में महके मेरे  

              उनकी प्रीत सुवास सखी री !!

वो चौमासे के मेघ के जैसे 

मैं पतझड़ का मास सखी री !

बरसेगें वो सावन जैसे 

बुझेगी मेरी प्यास सखी री !!

             इंदीवर वो राज महल के

             मैं कानन की घास सखी री !

             जीवन  का श्रृंगार वो मेरे

             सबसे वो है खास सखी री !!

आज नही तो कल सुध लेगें

छोड़ी ना मन आस सखी री !

भूल जाऊँ मैं उनको कैसे

तन मन उनका दास सखी  री !!

                                   "कवि" सुदामा दुबे