1 तस्वीर
मन की आँखों से देखकर
बड़े प्यार से मैंने उसकी
खूबसूरत सी तस्वीर बनाई,
तस्वीर ऐसी कि मुझे ही नहीं
हर किसी को बहुत भायी।
आश्चर्य मुझे भी हुआ बहुत
ऐसी तस्वीर भला मुझसे
कैसे स्वमेव बन ही पायी,
खैर ! मुझे तो वो ताजमहल से
कहीं कमतर नजर नहीं आई।
पर हाय रे मेरी किस्मत
तूने ये कैसी कलाबाजी खाई,
तस्वीर ने अपने रंग दिखाये
खूबसूरत रंग दम तोड़ने लगे।
खूबसूरत सी तस्वीर भी अब
शनैः शनैः बदरंग होने लगी,
उसके अहसास की खुश्बू भी अब
मेरे मन से थी खोने लगी।
और तो और उसका चेहरा भी
उसकी तरह ही स्याह दिखने लगा,
शायद उसकी असलियत का
पर्दा अब धीरे धीरे उठने लगा।
दोष उसका या तस्वीर का नहीं
दोष मेरी सोच कल्पनाओं का था,
मैं ही बिना सोचे समझे बस
ऊपर ऊपर ही था उड़ने लगा।
(विश्व चाय दिवस पर विशेष)
2 चाय
आज की सर्वाधिक जरूरतों में
चाय भी प्रमुख है,
कहने को हम कुछ भी कहें
पर बहुत बड़ा रोग है।
फिर भी आज की अनिवार्यता है
चाय के बिना रहा नहीं जाता है,
बहुतों की सुबह नींद से
पीछा ही नहीं छूट पाता,
वहीं न जाने कितनों का
शौच तक साफ नहीं होता।
घर में मेहमानों की इज्जतनवाजी में
चाय सबसे जरुरी है,
आफिस में रहने पर
चाय तो मजबूरी है,
अपना काम निकलवाना है तो
चाय जैसे संजीवनी है।
देर तक काम करने के लिए
चाय टानिक सी है,
टाइम पास करने के लिए
चाय अंगूरी सी है।
आजकल चाय जो नहीं पीते
समझना मुश्किल है
कैसे वे जीते हैं
हर किसी के लिए चाय की
अपनी महत्ता है,
कोई एक दो बार में
संतुष्ट हो जाता ,
किसी किसी का बार बार
पीना भी मजबूरी है।
अंग्रेज हमें चाय की चस्का
लगाकर निकल गये,
आज हमने उसे बड़े प्यार से
अपना सबसे प्रिय पेय बना रखा है।
आज तो आलम यह है कि
हम इसे छोड़ भी नहीं पाते,
छोड़ें भी तो कैसे भला
चाय के बिना रहने की
बात भी भला कहाँ सोच पाते?
चाय सर्वधर्म सम्भाव का प्रतीक है,
ऊँच नीच ,अमीर गरीब
जाति धर्म मजहब से दूर
चाय की सबसे प्रीत है।
3 कालाबाजारी
अब इसे क्या कहें?
कालाबाजारी या फिर
मर चुकी इंसानियत
या फिर विडंबना,
कुछ भी कहें पर
अत्यंत दुःखद है।
जब आज महामारी में भी
कुछ लोग इंसानियत को
तार तार करने में लगे हैं।
अफसोस तो यह है कि
तमाम पैसे ऊँची रसूल वाले भी
इस काले धंधे में लगे हैं।
कोरोना की दवाइयों, इंजेक्शन की
कालाबाजारी कर रहे हैं,
इसके लिए स्टाक तक को
गोलमोल कर रहे हैं,
पानी भर भर कर
इंजेक्शन से कोटापूर्ति का
इलाज कर रहे हैं,
जिनको बचाना था उन्हें
उन्हें खुद ही मार रहे हैं,
मुर्दों का भी इलाज कर
हजार क्या लाखों कमा रहे हैं।
आक्सीजन की कालाबाजारी कर
सौदेबाजी कर रहे हैं,
अस्पतालों में भर्ती कराने और
बेड दिलाने के नाम पर
सरेआम लूट रहे हैं।
बड़ा अफसोस होता है
कि बेबस परेशान लोगों की
भावनाओं से खेल रहे हैं,
महामारी के कारण जो पहले से ही
अधमरे से हो गए हैं,
उनके परिजनों की जान
बचाने की खातिर
उनका खून चूस रहे हैं।
इतना तक भी होता तो
शायद सह भी लेते लोग,
सफेदपोश भी इस गंगा में
डुबकी लगा रहे हैं।
जाने कितने लोग हैं जो
मौके को अच्छे से भुना रहे हैं,
इस कोरोना महामारी को
कमाई का जरिया बना रहे हैं,
बड़ी बेशर्मी से अपनी अपनी
जेबें खूब भर रहे हैं।
जिनके लोग मर गये हैं
उनके भी जज्बातों से खेल रहे हैं,
घर पहुँचाने के लिए भी
बोलियां लगा रहे हैं,
छोटी मोटी कालाबाजारियाँ कर
जो लोग जी भर पा रहे हैं,
वही लोग ज्यादा बदनाम हो रहे हैं,
मौके बे मौके बस
वही सजा भी पा रहे हैं।
संभ्रांत,बड़े लोग,रसूखदार
स्वच्छंद खुलेआम घूम रहे हैं,
कालाबाजारी के नित नये
देखिए!कीर्तिमान गढ़ रहे हैं।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
815285921
