Header Ads Widget

नवीनतम रचनाएँ

6/recent/ticker-posts

गगन-धरा

गगन-धरा

मैं धरा ,धरनी, धरती,हूँ
सदा से सृष्टि का भार उठाती हूँ
मानव के सुख दुःख की मैं गवाह,
इसके सुख दुःख को मैं भी सहती हूँ
कहता है मानव  
मैया मुझको,
बालक बन, 
सब खेल खेलता है
कभी प्रेम से सींचता मुझको
कभी काट वृक्ष घायल कर देता है
पर मैया हूँ 
मैं सहती हूँ
बालक के संग सदा रहती हूँ|




न भूखा बेघर कभी रह पाए यह,
इसे अन्न ,वस्त्र मैं देती हूँ
गगन में रहता है इसका ध्यान सदा,
यह उड़ना चाहे चारों दिशा
तू पा ऊंचाई खुश हूँ मैं 
पर चाहुँ 
तू  कर मेरी रक्षा
यह गगन भी मित्र हमारा है
इसी से वर्षा का सहारा है
ये देता सूरज का तेज हमें
इसी से चन्द्रमा की शीतलता है|

मानव तू सदा यह याद रखना
धरा और गगन का रिश्ता है पुराना
जो जीवन में तू पाना चाहे
इनसे ही तो है  
सृष्टि का हर खजाना|

                    नंदिनी लहेजा
                    रायपुर छत्तीसगढ़